नश्वर देह का अनश्वर धर्म
नश्वर देह का अनश्वर धर्म जिस शरीर को अपना ही खून कल अग्नि को समर्पित कर देने वाला है उस पूरे शरीर को दान नहीं भी करें तो कम से कम जीते जी रक्त, किडनी आदि का दान तो किया ही जा सकता है। देह-दान शब्द सुनते या पढ़ते ही सबसे पहला विचार जो दिमाग में आता है वह है मृत्यु, जो अवश्यंभावी है। आज नहीं तो कल, कोई पहले तो कोई बाद में लेकिन मृत्यु के नाम से ही मन में भय का संचार होने लगता है। मानव शरीरधारी भगवान राम और कृष्ण को भी समय आने पर यह शरीर त्यागना पड़ा था, जो जन्म के साथ ही स्व-निर्धारित है उससे भय कैसा? न ही इससे बचने का कोई उपाय है। चाहे कोई कितना ही बड़ा बलवान हो, धनवान हो, तपस्वी हो अथवा किसी भी रूप में कितना ही सक्षम हो इससे बच नहीं पाया। सारे संसार का इतिहास और पुराणों के कथानक इसके साक्षी हैं। प्राचीन या वर्तमान विज्ञान कितना ही उन्नत हो गया हो लेकिन मृत्यु पर विजय हासिल करने का सपना सपना ही है, तब घबराहट क्यों? और जब यह सुनिश्चित है तब इस क्षणभंगुर और अंत में राख के ढेर में बदलने वाले शरीर या उसके अंगों को किसी जरूरत